यह लघु सरिता का बहता जल का हिंदी में अर्थ - कलरव कक्षा 5 की कविता - यह सरल कविता गोपाल सिंह द्वारा रचित मन को शांति पहुचाने वाली कविता है | कवि ने इसमें नदी के जल की खूबियों का बखान किया है | नदी कैसे बर्फ के पहाड़ से निकल कर धीरे धीरे मचल कर उतरती है और दूध की सफ़ेद धरा सामान लगती है | चंचल चाल और निर्मल भाव से वह आगे बढती है |
यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल कितना निर्मल
हिमगिरि के हिम से निकल निकल
यह निर्मल दूध सा हिम का जल
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल
तन का चंचल मन का विह्वल
यह लघु सरिता का बहता जल
उँचे शिखरों से उतर-उतर
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर - दिन भर, रजनी भर, जीवन भर
धोता वसुधा का अन्तस्तलकितना शीतल कितना निर्मल
हिमगिरि के हिम से निकल निकल
यह निर्मल दूध सा हिम का जल
कर-कर निनाद कल-कल छल-छल
तन का चंचल मन का विह्वल
यह लघु सरिता का बहता जल
उँचे शिखरों से उतर-उतर
गिर-गिर, गिरि की चट्टानों पर
कंकड़-कंकड़ पैदल चलकर - दिन भर, रजनी भर, जीवन भर

यह लघु सरिता का बहता जल
हिम के पत्थर वो पिघल पिघल
बन गये धरा का वारि विमल
सुख पाता जिससे पथिक विकल
पी-पी कर अंजलि भर मृदुजल
नित जलकर भी कितना शीतल
यह लघु सरिता का बहता जल
कितना कोमल, कितना वत्सल
रे जननी का वह अन्तस्तल
जिसका यह शीतल करुणा जल
बहता रहता युग-युग अविरल
गंगा, यमुना, सरयू निर्म
यह लघु सरिता का बहता जल
गोपाल सिंह नेपाली सरिता का बहता जल - गोपाल सिंह नेपाली
यह सरल कविता गोपाल सिंह द्वारा रचित मन को शांति पहुचाने वाली कविता है | कवि ने इसमें नदी के जल की खूबियों का बखान किया है | नदी कैसे बर्फ के पहाड़ से निकल कर धीरे धीरे मचल कर उतरती है और दूध की सफ़ेद धरा सामान लगती है | चंचल चाल और निर्मल भाव से वह आगे बढती है | न जाने कितने पर्वतों को पार कर अपने दृढ संकल्प से लगातार उतरती है | बर्फ के पहाड़ों और घने जंगलों के बीच जहा कोई न रहता यह वह अपने छल छल आवाज़ से मंगल करती है | ऊचे पर्वत से उतरती और रस्ते में बड़े बड़े पत्थरों से टकराती हुई शोर मचाती है और सारे कंकडों पत्थरों से होकर बहती चली जाती है | बर्फ पिघल कर नदी बन जाता है और इसकी धार एक थके मुसाफ़िर की प्यास बुझाती है | धूप में जलती फिर भी निर्मल, स्वच्छ और शीतल यह युगों तक बहती है |