पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊँचे बन जाओ - कविता का अर्थ, hindi class 4 meaning
पर्वत कहता शीश उठाकर
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर
मन में गहराई लाओ
समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी-मीठी मृदुल उमंग! ।
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार
नभ कहता है फैलो इतना ढक लो तुम सारा संसार - – सोहनलाल द्विवेदी
कविता का अर्थ पंक्ति - पर्वत कहता शीश झुकाकर - इस पंक्ति में पर्वत हमें क्या संदेश दे रहा है
पर्वत मनुष्य को शिक्षा देता है कि वह भी महान बने और पर्वत सी ऊँचाई प्राप्त करें
पंक्ति - सागर कहता है लहराकर - सागर से हमें क्या सीख मिलती है
प्रस्तुत पंक्ति से हमें यश सीख मिलती है कि हमारे मन और विचारों में गहराई होनी चाहिए।
पंक्ति - समझ रहे हो क्या कहती हैं तरंगें हमें क्या सीख देती हैं
ह्रदय में उल्लास और उमंग की भावना के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो..” पृथ्वी का हमारे लिए क्या संदेश है
कठिन परिस्थितियों में भी हम अपना धैर्य न छोड़ें
पंक्ति- नभ कहता है फैलो इतना नभ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है
हमें संकीर्ण बातों को त्यागकर विचारों तथा आचरण को विस्तार देने की प्रेरणा देता है।